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Zidd

  • Writer: Anant Katyayni
    Anant Katyayni
  • Nov 21, 2019
  • 1 min read


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हज़ारों कांटे चुभते चमन में, हज़ारों सवाल उठते ज़हन में, हजारों धोखे मिलते रोज़ जहांं में फिर भी; एक गुलाब, एक जवाब, एक नेकी, बस वजह काफी हैं लडने के लिये।

सितम हज़ार हों चाहे जमाने के पास मगर मेरी ज़िद के सिवा मुझे आता ही क्या है? रात कितनी ही तूफानी क्यूं ना सही, इक दिया जलाने में जाता ही क्या है?

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